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लेखनी कविता -16-Mar-2022

सोच बदली, स्वभाव बदला, बदल चुकी है जीवन शैली।
साफ कपड़े और सुंदर चेहरे, आत्मा उतनी ही मैली।

पहले वाली मौज ना है, ना परिवारों में अब हंसी ठिठोली
गिल्ली डंडा, छुपन छुपाई, खेलती थी बच्चों की टोली

कितना सुख मिलता था तब, घर के स्वादिष्ट खाने का
अलग ही मजा होता था तब, मिलकर भोजन पकाने का

दिल बहुत बड़े थे सबके, भले ही पैसा होता कम था।
प्यार से बोले गए शब्द ही, तकलीफों का मरहम था।

आज कोई मददगार नहीं, दूरी के रिश्तों का सत्कार नहीं।
पड़ोसी भूखा मर रहा, बगल के घर को सरोकार नहीं।

एक अरसा हो गया है, दिल के जज़्बातों को टोले हुए।
बंद पड़ी हुई एहसासों की उस खिड़की को खोले हुए।

बीते वक्त में देखने का राह, यादों की ये मजबूत जंजीरें।
सुकून मिलता है देख कर, गुज़रे वक्त की धुंधली तस्वीरें।


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4 Comments

Shrishti pandey

16-Mar-2022 07:53 PM

Nice

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Swati chourasia

16-Mar-2022 07:46 PM

वाह बहुत ही सुंदर रचना 👌👌

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Gunjan Kamal

16-Mar-2022 06:49 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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